इस पुस्तक में गाँधी जी को चम्पारण तक लाने में कई माह तक जिस ग्रामीण राजकुमार शुक्ल ने अपना सबकुछ दाँव पर लगाया, उसे लेखक ने पूरे न्याय के साथ स्थान दिया. शुक्ल को एक मित्र वकील ब्रजकिशोर प्रसाद के प्रयास से गाँधी जी तक पहुंचने में भी उन्हें महीनों पापड़ बेलने पड़े. Jab Neel ka Daag Mita: Champaran-1917
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