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Dr S K Joshi's
Ulooktimes
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2.6/ 5
Updated
2 Years Ago
Blog by Dr S K Joshi
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बहुत खुश है गली के नुक्कड़ पर आजादी के दिन आजाद बाँटने के लिये खुशी के पकौड़े तल रहा है
Updated 6 Years Ago
By
Dr S K Joshi
देखी सुनी आस पास की कविता नहीं कहानी नहीं बस बकवास
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कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं
लम्हे
स्वागत है: शहर आपके कदमों की बस आहट से आबाद है
कुछ रखना कुछ बकना ना कहे कोई घड़ा चिकना हो गया
इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे
साथ में लेकर चलें एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
पर्व “हरेला” की बधाई और शुभकामनाओं के बहाने दो बात हरी हरी
फिर से एक आधी बकवास पूरे महीने के आधे में ही सही कुछ तो खाँस
महीने की एक बकवास की कसम को कभी दो कर के भी तोड़ दिया जाता है
अल्विदा ‘ऐलैक्सा’
फाईल होना ही बहुत है कभी खाली खोलने ही क्यों नहीं चले आते
कई दिन के सन्नाटे के बाद किसी दिन भौंपूँ बजा लेने में क्या जाता है
खुद अपना मन्दिर बना कर खुद मूर्ती एक होना चाहता है साफ नजर आता है देखिये अपने आसपास है कोई ऐसा जो भगवान जैसा नजर आता है
शुभकामनाएं पाँचवें वर्ष में कदम रखने के लिये पाँच लिंको के आनन्द
खूबसूरत लिखे के ऊपर खूबसूरत चेहरे के नकाब ओढ़ाये जायेंगे फिर ईनाम दिलवाये जायेंगे
बरसों लकीर पीटना सीखने के लिये लकीरें कदम दर कदम
अपने अपने मतलब अपनी अपनी खबरें अपना अपना अखबार होता है बाकी बच गया इस सब से वो समाचार होता है
बकवास अपनी कह कह कर किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं
खुजली कान के पीछे की और पंजा ‘उलूक’ की बेरोजगारी का
लगती है आग धीमे धीमे तभी उठता है धुआँ भी खत्म कर क्यों नहीं देता एक बार में जला ही क्यों नहीं दे रहा है
बेवकूफ है ‘उलूक’ लूट जायज है देश और देशभक्ति करना किसने कहा है मना है
ना शेर है ना समझ है समझने की शेर को बस खुराफाती ‘उलूक’ की एक खुराफात है दिखाने की कोशिश उतार कर मुखौटा बेशरम हो चुके एक नबाब का
लिखना जरूरी है होना उनकी मजबूरी है कभी लिखने की दुकान के नहीं बिके सामान पर भी लिख
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यार यस यस को समझ और यस यस करने की आदत डाल कुछ बनना है अगर तो बाकी सब पर मिट्टी डाल
ग्रह पूर्वा और इससे लगे ग्रहण को पूर्वाग्रह ग्रसित बताने का ठेकेदार नजर में आ गया
बन्द कर ले दिमाग अपना, एक दिमाग करोड़ों लगाम सपना खूबसूरती से भरा है, किस बात की देरी है
कुछ शब्दों के अर्थ तभी खोजने जायें जब उन्हे आपकी तरफ उछाल कर कोई आँखें बड़ी कर गोल घुमाये
शरीफ के ही हैं शरीफ हैं सारे जुबाँ खुलते ही गुबार निकला
कुछ भी करिये कैसा भी करिये घर के अन्दर करिये बाहर गली में आ कर उसके लिये शरमाना नहीं होता है
खुले में बंद और बंद में खुली टिप्पणी करना कई सालों की चिट्ठाकारी के बाद ही आ पाता है
कहाँ आँखें मूँदनी होती हैं कहाँ मुखौटा ओढ़ना होता है तीस मार खान हो जाने के बाद सारा सब पता होता है
जिसके नाम के आगे नहीं लगाया जा सके पीछे से हटा कर कुछ उसकी जरूरत अब नहीं रह गयी है
‘उलूक’ हर दिन अपने आईने में देखता है चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है
जो पगला नहीं पा रहे हैं उनकी जिन्दगी सच में हराम हो गयी है
हर कोई किसी गिरोह में है फिर कैसे कहें आजादी के बाद सोच भी आज आजाद हो गयी है
हर कोई किसी गिरोह में है फिर कैसे कहें आजादी के बाद सोच भी आज आजाद हो गयी है
पीना पिलाना बहकना बहकाना दौड़ेगा अब तो चुनावी मौसम हो गया है
पीना पिलाना बहकना बहकाना दौड़ेगा अब तो चुनावी मौसम हो गया है
चुनावी होली और होली चुनावी दो अलग सी बातें कभी एक साथ नहीं होती
चुनावी होली और होली चुनावी दो अलग सी बातें कभी एक साथ नहीं होती
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