Surendra Kumar Shukla Bhramar5

Surendra Kumar Shukla Bhramar5's Bhramar Ka Jharokha-dard-e-dil

This contains the social pain and different colour of
society

  • Rated1.9/ 5
  • Updated 1 Year Ago

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BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: दौड़ आंचल तेरे जब मैं छुप जाता था : रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली ओढ़...
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आम' आदमी बन जाऊं ---------------------- मन खौले 'शक्ति' की खातिर 'आम' आदमी बन जाऊं भीड़ हमार...
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